mere shabd
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दिनभर की गर्मी
सबको जलाये
संझा की बेरा
ठंडक भगाये
झोंका हवा का
पश्चिम से आये
मीठी सी खुशबू
मिट्टी की जो लाये
रात का अँधेरा
लगे माँ का आँचल
जब हो थका
मन, तन का मांसल
खटिया भी खरारी
जैसे हो मखमल
देखते ही उसको
नींद आये इकपल
पौहों का रम्भाना
संगीत सा सुनाये
मुर्गे की बांग
सुबह को जगाये
फिर से बही
दिनचर्या हमारी
शाम की प्रतीक्षा
सबको है प्यारी
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